STORYMIRROR

shikha rani

Tragedy

3  

shikha rani

Tragedy

कली की पुकार

कली की पुकार

1 min
11.9K


मैं छोटी सी कली थी, 

मैं तो अभी ठीक से खिली भी नहीं थी 

दूनिया क्या होता है देखी भी नहीं थी 

मैं तो अपनी खुशबू से सब को अपना बना लेती थी 

मेरे पास कभी भँवरा आता, 

तो कभी तितली आती 

मुझे मालूम ना था, की मुखौटा भी होता है 

एक रात जोर की आंधी आई 

मैं तो निर्भय सो रही थी 

मुझे मालूम ना था, 

वह रात मेरे लिए अँधेरा सा होगा 

उस रात ने मुझे रौन्द दिया 

मैं रोई पर कोई देख ना पाया 

मेरे पत्तों का सूखना कोई देख ना पाया 

मेरी पुकार को कोई सुन ना पाया 

बहुत हिम्मत के बाद मैं फिर से खिली 

फिर से मेरे पास भँवरा आया, तितली आई

पर वह रात भी साथ आई

मैं जब भी खिलती वह रात आ जाती 

मेरी टहनी भी अब सूखने लगी थी 

फिर एक दिन उस अँधेरा को हटाने के लिए 

चिराग आया, उस चिराग से अँधेरा तो 

हार गया पर मैं अब नहीं कहीं.


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy