मैं और तुम
मैं और तुम
मैं और तुम
दो ओस के बुंदे थे
जिन्दगी जहाँ ले जाती
उन रास्तों पर चल जाते
मैं और तुम
ना जाने कब पानी बन गए
सागर के किनारे पहुंच गए
हाँ
मैं और तुम
जीने की चाह बन गए
मैं और तुम
मैं और तुम
दो ओस के बुंदे थे
जिन्दगी जहाँ ले जाती
उन रास्तों पर चल जाते
मैं और तुम
ना जाने कब पानी बन गए
सागर के किनारे पहुंच गए
हाँ
मैं और तुम
जीने की चाह बन गए
मैं और तुम