चाहत
चाहत
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कभी फुरसत मिले,
तो मुझे पढ़ना जरूर
सुखी स्याही से उकेरता हूं,
धुंधले से ख्वाब
अब अगर आओगे तो पूरा,
पढ़ के ही जाना
मेरे बेमिसाल उलझनों की,
ये मुकम्मल किताब।