आदत सुधारो, धरती संवारो
आदत सुधारो, धरती संवारो
ठहरो, रुको अपनी मजबूरियों को संभालो,
ये पानी की गागर की जगह
जो प्लास्टिक का जो कचरा है उसको
संभालो
ये घर की रोटी लिपटी रहती थी जो किसी पत्ते,
कपड़े में
अब उसकी जगह लगे ये पॉलीबैग
ये रैप को संभालो
मां के हाथों की भूनी लैया, भूजा,
चूड़ा छोड़ जो चले हो,
तो चोकोलेट, चिप्स के रैपर उठालो ,
घर की शिकंजी के जग छोड़ कर ,
ये जो पेप्सी कोका पे टिके हो
तो बॉटल का कचरा भी खुद ही उठा लो,
माँ के आहार को भूल कर,
फैक्टरी के विहार पर हो
फिर भी चाहते हो ये धरती माँ
तुम्हारा कचरा संभाले,
शर्म आनी चाहिए इस दुर्दशा करने पे खुद पर,
चलो इसको हटा कर, कुछ पेड़ सजा लो,
माँ है धरती हमारी, आओ मिलकर गुलशन संवारे,
हवा की झोंक बहने दे, नदी का रंग निखारे।।