*आत्महत्या का वास्तविक स्वरूप*
*आत्महत्या का वास्तविक स्वरूप*
दिल टूटने की आवाज़ होनी चाहिए,
मन बिखरे तो आवाज़ होनी चाहिए,
बहरों की दुनिया ये भले ही नहीं,
पर इन आवाज़ों की भी पहचान होनी चाहिए।
किडनी खराब है या अटैक है पड़ा
इस दर्द के इलाज हैं तो सही,
पर साहस छूट जाये, ढांढ़स टूट जाये
तो इस मर्ज को कोई देखता भी नहीं।
अंदर से भेद कर चिंता की आरी,
दिल, दिमाग, चैन सब खा जाती है,
फिर खोखली सी ये मानव की काया,
रस्सियों पर टंगी तो कभी ज़मीन पर पड़ी
नज़र आ ही जाती है।
क्या इंसान है, दो पल भी जी नही सकता,
एक पल भी सच्ची मुस्कान नहीं है,
आदमी की ज़िंदगी है जैसे माटी का खिलौना
टूट जाये तो जुड़ना आसान नही है।