खुशियाँ
खुशियाँ
खुशियाँ ढूंढने निकले थे दुनियां में
दुनियाँ के रास्ते भरमाते रहे
जो कुछ भी था हमारे पास
उसे रास्ते में लूटाते रहे
जो मंजिल ना पा सके हम
कभी मंदिर, कभी मस्जिद
कभी चर्च, तो कभी गुरुद्वारा
जा के किस्मत आजमाने लगे
कुछ हासिल न कर सके तो हम
खाली हाथ घर वापिस जाने लगे
घर में थोड़ा अंघकार था
ध्यान से देखा जो हमने
वहाँ हमारी खुशियाँ का खजाना था
बस दिपक जलाने भर की देरी थी।
