सुबह की सैर
सुबह की सैर
तड़के सुबह के सैर पर जाया करो....
थोड़ा योग व्यायाम प्राणायाम किया करो....
इस कठिन दिनचर्या को भी अपनाया करो.....
अच्छा.. इसके लिए मुझे रोज उठाया करो......
कैसे उठाऊंँ ..देता हूंँ रोज आवाज.....
नहीं रेंगते ..तुम्हारे कानों में मेरे सुर और साज....
यंत्रणा प्रताड़ना क्या है.. जानो तो जरा......
बिचारी एक बाध की खटिया की आह एहसास सुनो तो जरा
अच्छा ..हाथ लगाओ उठाओ तो जरा.....
मुझ पर अपनी योगमाया अपनाओ तो जरा.....
इस कद्दू रूपी तोंद के आगे तो मुंँह टमाटर हुआ....
तुमको उठाते ..मेरा हाल बेहाल हुआ........
रहो लेटे यूंँ ही ..इस कठिन तप को मैं ही अपना लूंँगा..
तुमको उठाते उठाते मैं ही उठ जाऊंँगा......
सुबह की सैर के चक्कर में अंतिम यात्रा पर निकल जाऊंँगा
सारे हसीन सपने मेरे जीवन के यूंँ ही धरे रह जाएंगे...
तुम्हारे सैर के चक्कर में आगे के जीवन को ना जी पाएंँगे...
निकलता हूंँ मैं अब अकेले ही स्वर्णिम किरण से पहले ..
प्राण भोर की वायु में खिल खिल जाते हैं...
आसमान के चांँद के आगे..
धरती के चांँद के दीदार भी हो जाते हैं..