जवानी का रंग, होता मलंग।
जवानी का रंग, होता मलंग।
जब हुआ जवान,
चेहरे पे आई,
मूंछ और दाढ़ी।
आने लगे सपने,
हसीनों से रूबरू होने के,
उनकी खूबसूरती पे,
कुछ अल्फाज लिखने के,
उनकी जुल्फों से खेलने के।
एक दिन बात,
कुछ आगे बढ़ी,
वो थी पीले वस्त्रों में सजी,
सरसों के खेत में खड़ी,
मंद मंद हवा थी चली,
सरसों की डालियां झूमती,
वैसे ही वो,
मटकती हुई चलती,
हर नज़र,
उसको जाए चुमती।
जवानी ऐसे फूट फूट कर थी भरी,
इंद्रलोक की अप्सरा आ जमी।
