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बहुत सपनें देखें

बहुत सपनें देखें

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बहुत सपने देखें।

तितलियों के संग उड़ने का,

तूफान में नाव चलाने का,

उन तारों से जा जुड़ने का,

कभी हँसके तुम्हे हँसाने का,

बहुत सपने देखें।

कुछ सुलझें , कई उलझ गएँँ।

बहुत सपनें देखेंं।

पर इनमें से कोई ख्वाब न था।।


आजकल बहुत बेचैनी रहती है;

या तो नींद नही आती

या फिर वही ख्वाब, सपनों में बहती है।


इक ख्वाब;

जिसकी शुरुआत थी, इक बच्ची बेज़ुबान।

ख्वाब को पाने के हैं रास्तें, अनजान।

पर अंत तय है, अंत श्मशान।।


ख्वाब तो ऐसे ही होते हैं ना।

बेचैनी से सराबोर जीना,

या मर जाना।

आँखो में अंगारें जलना,

या रौशनी का बुझ जाना।

अपनी मर्जी से चलना,

या हमेशा के लिए रुक जाना।।


आजकल लोग मुझसे खिंचे-खिंचे से रहते हैं।

उन्हे मेरी हँसी से डर लगता है,

और मुझे उनके डर पे हँसी आती है।


अकेला श्मशान की ओर जा रहा हूँ।

नही, उस दरिंदे की तलाश है।

उसके चीखों की मिठास,

उसके जलने का स्वाद,

उसके सड़ने की सुगंध,

आह, ख्वाब जल्द ही पूरा करूँ मेरा,

अब मंज़िल भी पास है।।


कुछ लोग अब भी हमदर्द हैं,

उनसे बस यही गुज़ारिश है।

दफनाया उसे घर के पास,

वहीं मरने की ख्वाहिश है।।


ताकि फिर से हम,

बहुत सपनें देखें।

तितलियों के संग उड़ने का,

उन तारों से जा जुड़ने का,

हँसना और हँसाने का,

हम बहुत सपनें देखें।।





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