वो कल ख्वाब में आई
वो कल ख्वाब में आई
वो कल ख्वाब में आएँगी, हमें क्या पता था।
हम तो उनके दीदार को, भटकते चले गए।।
इक बार वो मिलीं,
अनजाने में ही सही।
पर ख्वाब में आकर,
बेहिचक मुस्कुरा जाएँगी , हमें क्या पता था।
(हम तो) बेशोख उनके चेहरे को, तरसते चले गए।।
सोचा था कि बहारेँ आएँगी,
दिल अरमानों से भर जाएँगी।
पर उनके देखते ही,
सारे अरमान खो जाएँगे , हमें क्या पता था।
हम तो उन्हे सोच कर, बहकते चले गए।।
(ख्वाब में)
ना दिन था न रात,
ना करनी थी कोई बात।
बस साथ-साथ चलते-चलते,
उनसे रुख़सत हो जाएँगे, हमें क्या पता था।
हम तो दी़दार को दरिया, समझते चले गए।।