एक मुस्कुराहट
एक मुस्कुराहट
दुनिया में गम बहुत था,
एक मुस्कुराहट बाँट लेते,
तो क्या कम था !
नज़रों को फेरकर अपने,
मुलाकात न की उस अनजान से,
दो आँखें गर सत्कार कर लेतीं,
एक दूसरे का,
तो क्या गम था !
वो जो उसकी बकबक से,
परेशान थे तुम,
वो बरसों का डरा,
सहमा इंसान,
तुमसे थोड़ा दुख बाँट लेता,
तो क्या गम था !
वो जिसकी शाँति,
तुम्हें काट रही थी,
बरसों बाद जिसे मिलीं थी खुशियाँ,
उसकी शाँति का तुम भी,
सम्मान कर लेते,
तो क्या कम था !
किसी के शरीर को काटकर,
>उसको चोट पहुँचाकर,
क्या पाया ही तुमने ?
आत्मा उड़ गई जो आकाश में,
शरीर भी प्रतिरूप उड़ जाता,
तो क्या गम था !
तुम्हें दिक्कत है अल्लाह से,
तुम्हें दिक्कत है भगवान से,
अरे, तुम्हें दिक्कत है इंसान से,
तुम्हारे जैसा एक इंसान न बनता,
तो क्या कम था !
वो जो सिखा रहे तुम्हें रात - दिन,
कि ये दुनिया बहुत मतलबी है,
गर वो हर इंसान,
अपने मतलब से न जीता,
तो क्या कम था !
दुनिया में चाँद के दीवाने तो बहुत थे,
तुम कर लेते एक तारे से प्यार,
तो क्या गम था !