अन्धबाई
अन्धबाई
मरुत् का द्रुत वेग करता सांय- सांय
कह रहा है आज चलती अन्धबाई
सामने जो आज आया ठोकर लगाई
ना हटा तो चल पड़ी करके चढ़ाई
मैं हूं अन्धबाई
मैं हूं अन्धबाई
तेरी चमक से हे अंशु मैं डरती नहीं
हूं अन्धबाई चाहूं सदा चलती रहूं
शक्ति है कर में मेरे मैं उड़ती रहूं
और चाहूं मैं जिसे उसको उड़ा के ले चलूं
मैं हूं अन्धबाई
मैं हूं अन्धबाई
संचित क
रो की शक्ति को ना गर्व कह
यह है मेरी कर्मठता का उज्जवल प्रतिक
कर्म मेरा उड़ना-उड़ाना,
उड़ रही हूं चीख-चीख
अंशु तू चुप बैठ मैं नहीं बीता अतीत
मैं हूं अन्धबाई
मैं हूं अन्धबाई
धरणी तेरे ऊपर सदा चलती रही
और तांडव नृत्य मैं करती रही
पुत्र तेरा था विवश मैं खड़ी हंसती रही
और अपने ही करो से कर्म को कर गाती रही
मैं हूं अन्धबाई
मैं हूं अन्धबाई