समर्पण
समर्पण
सुंदर मुखड़ा चांद का टुकड़ा
हाय कहां से आया रे
छम-छम करती नाक की नथनी
कौन इसे ले आया रे
काले केश सघन घुंघराले
किसने इसे बनाया रे
अधरों पर लाली कैसे पाली
हाय हमें बतलाना रे
आंखों में लज्जा ज्वार उफनता
किस-किस पर छलकाया रे
भव काली नागिन सी पाली
किस-किस को डसवाया रे
अद्भुत तेरा रूप सलोना आकर्षण है
कौन-कौन पगलाया रे
<
span>पग-पग धरती घुंघरू छलके
तूने किसे नचाया रे
बोली तेरी सरस सलिल सुन
हाय कौन ना कर बैठा है रे
मौन मस्त है जो मैंना तू
तो मैं भी पागल तोता रे
प्रेम शक्ति का आकर्षण ध्रुव
तेरे अंदर संचित रे
तू क्या, मैं क्या, मैं जानू
लोहा मैं तू चुंबक रे
लावण्य- कमनीय रूप बिखरता
इसको सदा बहाना रे
पद्मिनी योग की तू नारी
सर्वस्व समर्पण करता मैं.