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Kajal Kumari

Tragedy Fantasy Inspirational

4  

Kajal Kumari

Tragedy Fantasy Inspirational

कितनी विचित्र हैं जिंदगी

कितनी विचित्र हैं जिंदगी

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कितनी विचित्र हैं जिंदगी और कैसा जन्म मरण हैं

"कही अदृश्य हो आत्मा होती जाती कही वरण हैं

जिंदगी को जितनी पढ़ी उतनी ही अनसुलक्षी रही

चिंगारी से बहू ज्वाला बनी पर अंत में रखे सी बुझा रही


सदा अपने पास रहकर फिर भी कितनी दूर है

यद्यपि यह अपनी नही फिर भी संग भरपूर ह

कौन यहाँ किसका होता. बात यह बड़ी विचित्र हैं

फिर भी रिश्ते सच्चे लगते हैं मानी अटूट परम पवित्र हैं


आते-जाते रहते घर में नए-नए मेहमान अनोखे

बनकर वे मित्र संग संबंधी चले जाते है देकर धांख

अपना कैसा अपनाकर

बेरी सा व्यवहार करता गया अचानक एक दिन


पुन: नही कभी है। करता

करता रहे फिकर कोई हो जाता है जो होना साथ रहेका ले ले लाभ

सब व्यथ विरह में रोना

कौन जानता कल क्या होगा या कहा ही न मिले

किसको कर लो तुम कुछ शुभ काम जग में जाना निश्चित सबको


तुम खलाते हो औरो को, तुमको कुलाएगा कोई और

चलती रही चंचल आत्मा कभी रक्कती नहीं इकठौर,

आना खाली जाना खाली व्यर्थ ही है सारा धंधा फिल भी

नर मलता मल आँख मीच हो अंधा


मलमल, धोता जा मल सारा अन्यथा जाएगा होकर

गंदा उज्जवल, कीर्ति करीन कप्या तो पड़ेगा जमपुरी में फंदा

बड़े मोह माया का जाल, विहाह, यहाँ कैसा अदृश्य

बिहा विपरीत दिखाई देती हैं। जो सत्यता की शिक्षा है।

कितनी विचित्र हैं जिंदगी और कैसा जन्म मरण हैं


"कही अदृश्य हो आत्मा होती जाती कही वरण हैं

जिंदगी को जितनी पढ़ी उतनी ही अनसुलक्षी रही

चिंगारी से बहू ज्वाला बनी पर अंत में रखे सी बुझा रही

सदा अपने पास रहकर फिर भी कितनी दूर है

यद्यपि यह अपनी नही फिर भी संग भरपूर ह


कौन यहाँ किसका होता. बात यह बड़ी विचित्र हैं

फिर भी रिश्ते सच्चे लगते हैं मानी अटूट परम पवित्र हैं

आते-जाते रहते घर में नए-नए मेहमान अनोखे

बनकर वे मित्र संग संबंधी चले जाते है देकर धांख


अपना कैसा अपनाकर

बेरी सा व्यवहार करता गया अचानक एक दिन

पुन: नही कभी है। करता

करता रहे फिकर कोई हो जाता है जो होना साथ रहेका ले ले लाभ

सब व्यथ विरह में रोना


कौन जानता कल क्या होगा या कहा ही न मिले किसको

कर लो तुम कुछ शुभ काम जग में जाना निश्चित सबको

तुम रुलाते हो औरो को,                       

तुमको कुलाएगा कोई और चलती रही चंचल आत्मा कभी रक्कती नहीं इकठौर,


आना खाली जाना खाली, व्यर्थ ही है सारा धंधा।                      

फिर भी नर मलता मल,आँख मीच हो अंधा

मलमल धोता जा मल सारा अन्यथा जाएगा होकर गंदा उज्जवल,

कीर्ति करी न काया, तो पड़ेगा जमपुरी में फंदा


बड़े मोह माया का जाल, यहाँ कैसा अदृश्य बिहा विपरीत दिखाई देती हैं।

जो सत्यता की शिक्षा है। 


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