प्रेम
प्रेम
प्रेम कोमल है पुष्पों के पराग सा
प्रेम सुंदर है सावन में बाग सा
प्रेम पवित्र है गंगा के नीर सा
प्रेम प्राण है जीवित शरीर का
प्रेम विश्वास है और समर्पण है
प्रेम परमार्थ छवि का दर्पण है
प्रेम इच्छाओं से मुक्त है
प्रेम त्याग से युक्त है
प्रेम देह मरने पर भी नहीं मिटता है
प्रेम शब्दों में नहीं सिमटता है
प्रेम समाहित करता अपनत्व की धार को,
प्रेम खोलता है हर हृदय के द्वार को।
प्रेम सत्य है, प्रेम धर्म है,
प्रेम स्वयं एक भक्ति कर्म है।
जय श्री राधे कृष्णा
