किसान की अफसर बेटी
किसान की अफसर बेटी
तुम कहते हो न सदा मैं गीत क्यों क्रांति के गाती हूं।
आओ आज तुम्हें मैं अपनी हर व्यथा सुनती हूं।
हूं मजदूर किसान का बेटी सरकारी विद्यालय से पढ़ी हुई।
खेतों में काम किया उस मिट्टी में कितने अभावों से बड़ी हुईं।
फिर भी मैंने बड़ा एक सपना देखा, IAS की तैयारी का।
हाथ तंग गणित में मेरा, पर क्या करती इस बीमारी का।
रट्टा मारा हर कोशिश की, फिर भी हार नहीं मैंने थी मानी।
पर यूपीएससी ने ही, इस बार करी अपनी मनमानी।
आईआईटी के प्रश्नों को, 10वीं के बताकर थे पूछ रहे।
बताओ सूरज कैसा दिखता है, वो चांद दिखाकर पूछ रहे।
csat के नाम पर हमसे, ये भेदभाव क्यों जारी है?
अन्य माध्यमों के ऊपर, अंग्रेजी ही क्यों भारी है?
आज भी गांवों की मिट्टी में आधे से, ज्यादा भारत बसता है।
गांवों में आज भी किसानों का बेटी बेटा, किताबों को तरसता है।
फिर भी हमने हार ना मानी, हर पेपर को पास किया हैं।
पर csat कि मनमानी ने, इसबार कितना इंसाफ किया हैं।
अब हल बैल संग न हम खेतों में खेती करने को जाएंगे , एक किसान की बिटिया को लोग अफसर की कुर्सी पर बैठा पाएंगे ।
