प्रकृति का श्रंगार
प्रकृति का श्रंगार
कितना सुंदर ये संसार ऋतु की यहां बहार
जीव, जंतु, पशु, पक्षी, पेड़, पौधे, फूल
सब मिल जुल यहाँ रहते, इन सब से बना प्रकृति का संसार
प्रकृति हमें बुहत कुछ देती अन्न, जल, वायु,
जीवन है इससे हमारा करती हम पर उपकार
आओ प्रण ले पौधे लगाए अधिक से अधिक महफूज रखे इस प्रकृति को आज
सुंदर रूप हरा धरा का,
आंचल हो जिसका नीला आकाश, पर्वत जैसा ऊँचा मस्तक,
सूरज, चांद की बिंदी सा जिसका ताज
नदियों,झरनों से छलकता यौवन, रंग बिरंगे पुष्प लताओं से हो वसुंधरा तेरा श्रंगार
खेतों खलिहानों में लहलहाती फसले बिखेरती मुस्कान,
यही तो है प्रकृति का सौंदर्य स्वरूप प्रफुल्लित जीवन का सार
रंग बिरंगे फूल कालिया उपवन में छाए
मधुर गुंजन कर्ता भ्रमर उन पर मंडराते
कालिया और फूल सुगंध पर इठलाते
भ्रमर मधु रस का पान कर अति हर्षित हो जाए
सिमटी हुई कालिया प्रभात में खिल रही जो उपवन को महक जाए
डाल- पात रंग बिरंगे पुष्पों संग झूम- झूम हवा लहराए
रंग बिरंगे पुष्प मन को लुभा जाते
करते ये पुष्प वसंत ऋतु का आगाज
पुष्पों की सुंदरता से धरा का महक जाता संसार
तरु वर की छांव में पक्षियों का बसेरा, बनाते पक्षी तिनके जोड़ छोटा सा घरौंदा
पक्षियों का कलरव, नाचता मोर मन को भाता
सभी जीव में छलकता एक दूसरे के प्रति प्यार
सतरंगी इन्द्रधनुष निराला है सभी के जीवन में रंग भर लाया है
बड़ी अनोखी इसकी पहेली है धूप, वर्षा इनकी संग सहेली है
रंगों का जादू दिखाता, रहता नीले आसमान में सात रंगों से सरोबार
चाँद तारो से जगमग आसमान जिसके आगोश में सारा जहान,
निशा में चमकते आकाश में तारे जैसे किसी माला के चमकीले मोती बिखरे हो
चाँद दमकता खूबसूरती की कहानी अपनी कहता
एसा वो चाँद प्यारा सुधाकर नाम से जाना जाता
प्रकृति के अनगिनत रूप स्वर्ग सा इसका रूप, सहेजे इसे बचाए
पेड़, पौधे लगाकर अपना कर्तव्य निभाए, मानव जीवन है इससे अपना इस बात को भूल न जाए
करके इनकी देखभाल नन्हें बच्चों की तरह अपना मानव धर्म निभाए।
