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anju Singh

Fantasy

4  

anju Singh

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अकेला पन

अकेला पन

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मैं अकेली हूँ,

मैं अकेले ही रहना चाहती हूँ। 

इस दुनिया की भीड़ में, 

मेरा क्या काम 

मैं अकेली हूँ, 

तो एक सुकून सा भी है, 

ना किसी के आने की उम्मीद 

ना किसी के जाने का डर 

ना किसी को खोने का खौफ 

ना ही किसी से जुदा होने पर उदास रहना। 


मैं अकेली हूँ 

मेरा अकेलापन मेरे को एक हिम्मत देता है, 

मेरे दिल और दिमाग को अपने उदेश्य से भटकने नही देता है। 

कभी अकेले पन से थक भी जाती हूँ तो, 

दिल से एक आवाज़ आती हैं, 

वो खामोशी मेरे को बताती हैं, 

क्यो डरती तू अकेलेपन से 

ऐ पगली तेरे साथ कौन आया था 

और कौन जाएगा 

तू अकेली आई थी और अकेली ही जायेगी। 


इस दुनिया में भेड़ चाल चल कर 

तेरे को तेरे ही लूट खाएगे, 

ये इंसान हर दिन रगं बदलता है, 

तू किस -किस को पहचानेगी, 

जब तक तू कुछ जान या पहचान पाएगी

तब तक तो तू सब कुछ हार चुकी होगी। 

ये इंसान उठते इंसान को गिराता हैं और हारे इंसान का मजाक बनाता है। 


दोनों हाल में ही तू फिर भी अकेली सी रह जाएगी 

फिर क्यों परेशान हैं तू इस अकेलेपन से 

मैं अकेली ही अच्छी हूँ 

और मेरा अकेलापन मेरा दोस्त हैं। 

जो मेरे को सही राह दिखाता हैं और अगर भड़क भी जाए

मन मेरा तो दिल हैं कि कही जाने ही नहीं देता है। 

मैं और मेरा अकेलापन मेरे ही सबसे अच्छे दोस्त हैं। 


यही अकेला पन मेरे को भडकने नही देता है। 

यही तो असली मेरा और अपना है,, 

मैं और मेरा अकेलापन मेरे को बहुत पसंद है। 


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