प्रतीक्षा प्रेम की
प्रतीक्षा प्रेम की
कैसी-कैसी परिस्थितियां आती पर ना डोला मैं
पर, प्रेम पाश में बंधकर, सुध निज की खो बैठा मैं
अचल दिवाकर, अचल चंद्रमा, अटल प्रतिज्ञा मेरी
वसन त्याग जीवन भर का यदि हुई नहीं तुम मेरी.
नहीं है मिथ्या वचन यह मेरे नहीं कोई दिखलावा
अगर प्रेम है सच्चा मेरा तो होगी देह अंगारा
शीत लहर से व्याकुल होकर नस फेंके फव्वारा
पर उबलते उस लहू में प्रिय होगा प्रेम तुम्हारा.
यह ज़रा सी ऋतु बेचारी, भयभीत जिससे दुनिया सारी
क्या डिगा देगी मुझे? मैं बड़ा हूं अहंकारी
मुझसे टकराकर, ठंडी नष्ट होगी, बनके गर्मी
और उस जलती पवन में प्रिय तुम्हारा नाम होगा.
क्या मेरा यह दग्ध अंतर भी तुम्हें ना आंच देगा?
प्रेम में व्याकुल मेरा मन ना तुझे संताप देगा?
मेरी पीड़ा का तरंगन क्या तुझे ना त्रास देगा?
कुछ तो होगा, तेरे अंदर, जो मेरे इस प्रेम का तुझे एहसास देगा.
पुष्प की उठती महक का भी कोई आधार होगा
विश्वास है कि प्रिय तुम्हें भी मुझसे ही प्यार होगा
पर नहीं मैं जानता किस घड़ी इज़हार होगा
किस घड़ी इस पुष्प में गंध का संचार होगा.