STORYMIRROR

जिज्ञासा

जिज्ञासा

1 min
1.3K


उर्ध्वगामी श्वास में भी हो तुम्हारी  आस

कामना है मन विकल की तुम रहो अब पास

ज़िंदगी में तुम मेरी बन आई नव उच्छवास

दूर तुझसे  रहकर मैं अब पा रहा  हर पल त्रास।

कल्लोलिनी के तट पे रहकर भी रहे जब प्यास

उछिन्न तन, उद्विग्न मन से गुजरे क्षण, पल, मास

तेरे रूखेपन से तड़पन ढेरों हैं सवाल

संचालिनी, संसाध्य तू, तुझको क्या विश्वास।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy