काव्य होली
काव्य होली
शब्द को अर्थ देकर काव्य रंग भर दो अपनी लेखनी में
श्रृंगार अपने भावों का करो रंगकर अपने प्यार के रंग में
काव्य रंगोत्सव का मना रहे आज छंद को मकरंद दे दो
काव्य रंग की धारा बहा दो सब मिलकर इस फागुन में
इस होली पिचकारी में भर लाओ काव्य के अनोखे रंग
व्यथा दिल कि बटोरकर रंग दो उसे सुख के गुलाल में
मौन -सी कलियों को स्पर्श कर फूलों में मुस्कान भर दो
स्नेही हृदय से शब्दों में रंग भरकर मल दो उस काव्य में
भावनाओं से हृदय की काव्य धारा आज बह जाने दो
काव्य का यह नशा कहाँ होता है होली के उस भांग में
शब्दों में अबीर -गुलाल केसर की थाली सब सजी हुई
होली का रंग चढ़ा दो आज अपनी इस काव्य रचना में
ये जग सारा खेल रहा है होली रंगों में सराबोर होकर
शब्दों के मधुमिलन में सुना दो एक राग इस फागुन में
होली मिलन पर देखो कविवर शब्दों के रंग खेल रहे हैं
नशा चढ़ा कुछ ऐसा कि मन रंग गया होली के रंगों में
काव्य सरिता बह रही जैसे भर -भर पिचकारी मारी है
कहीं प्रेमसागर बह रहा कहीं बसा कोई मन मंदिर में।
