उल्फ़त
उल्फ़त
आज हमसे नजरें मिलाने से वो जो बचती है,
कभी उल्फत की नजरों से देखा करती थी !
गैरों की बातों में जो अजनबी सी हो गयी हैं
वो नाजनीन भी मुझसे बेइंतहा इश्क करती थी !
सहेली से रूबरू गुफ्तगू करने का बहाना करके,
आती थी वालिदन से नजरे झुका कर के!
सीने से लगकर कहती चलो एक हो जाये हम,
इस बात पर उनसे खूबसूरत शरारत हुई थी !
नदी की लहरे ये महकती हवाओं के झोंके,
दिल के जज्बे होंठों पर नगमे बन के आये थे !
कैसे भूल जाऊं मिलन का वो हंसी पल,
बेशुमार मेरे प्यार में डूबी थी वो हसीना हर पल !
उसके प्यारे खतों को सबसे छुपाकर रखना,
चुपके से उसकी किताब में गुलाब रखना !
अचानक किसी का इश्क के नजारे देख लेना,
फिर हाथों का यूं नजरें झुका आहिस्ता मलना!
चुराती जो निगाहें उनको हम से मोहब्बत हुई,
इश्क का राज खुलने पर कैसी कयामत हुई !
