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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy

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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy

कभी मुझ पर भी लिखो कविता

कभी मुझ पर भी लिखो कविता

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(किसी की स्मृतियों को जहन में लिए)


वो अक्सर 

मेरे ख्वाबों में आकर 

पूछती है मुझसे,

तुम कैसे लिख देते हो 

इतनी गहरी अर्थपूर्ण कविताएं..!

कभी मुझ पर भी लिखो...!

मेरे बिखरते, टूटते और 

गहराते अस्तित्व पर..!

मेरी हर पीड़ा पर

अपने कलम की अजब जादूगरी के 

नायब करिश्माई शब्द....!

तुम्हारी कलम की खुशबू

उसके हर एक शब्द

बिखरते हैं 

सुगंध चारों ओर..!

जो भी पढ़ता है 

बस मंत्र मुग्ध सा हो जाता है

खुद में पाता है 

एक नया अर्थपूर्ण लक्ष्य खुद के लिए..!

तुम्हारी कविताएं 

मन में व्याप्त दुखों को 

चुटकियों में हर लेती हैं और 

अंदर छुपी हुई खुशी को 

चेहरे पर ला देती हैं..!

जब भी तुम्हारी कलम 

कागज पर उतरती है 

तो मानो 

एक खामोश नदी 

खिलखिला के 

स्मृतियों के पटल पर 

पुनः उभर आती है और 

अपने कलकल से 

फिर उसी जोशों खरोश से 

बहने लगती है 

जैसे अतीत में बहती थी...!

तुम्हारी कविताएं 

सच जान फूंक दिया करती है..!

क्या मुझमें 

मेरी आत्मा में भी 

तुम्हारी कविताओं का असर संभव है..?

सुनो..!

कभी मुझ पर भी लिख दो 

अपनी चंद पंक्तियां 

ताकि तुम्हारी स्मृतियों में 

सदा के लिए बस जाऊं..!

और जब तुम उदास हो 

तो मैं शब्दों के रूप में 

तुम्हारे सामने खड़ी हो

तुम्हें झकझोर के पूछूँ...

चलो अब साथ चलते हैं 

तुम्हारी कविताओं में 

उस अंतिम पथ पर 

आखिरी सांस तक 

साथ साथ

हम तुम...!!!


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