मोहब्बत की मुफ़लिसी
मोहब्बत की मुफ़लिसी
ज़रूरतों के आँगन में तकलीफ को सजाए
नफ़रतों के आसमाँ में दुआ लिए घूम रहें हैं
ईमानदारी को तन्हाई के जंजाल में सजाए
ज़मीर की आँखों से अंध बनके घूम रहें हैं
ज़िन्दगी की सिलवटों को ज़िम्मेदारियों में सजाए
तूफ़ान के सामने वक़्त की नाव बनके घूम रहें हैं
जज़्बात के अकाल में बेपनाह इश्क़ को सजाए
दौलत के बाज़ार में किफ़ायत बनके घूम रहें हैं
उम्मीद की बाहों पे ख़्वाइशों के बोझ सजाए
दिल में शिकायतों का सैलाब लिए घूम रहें हैं
विश्वास की डाल पे मतलब का व्यापार सजाए
क्षितिज पे मन्दी की बहार लिए घूम रहें हैं
मोहब्बत की मुफ़लिसी चहरे पे सजाए
कमीज़ की जेब में शोहरत लिए घूम रहें हैं