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Pathik Tank

Inspirational

4.3  

Pathik Tank

Inspirational

निंदा

निंदा

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बर्फ की वादी में रक्त की नदी बही थी

कुछ अपनों की याद में सबकी आँखों में नमी थी


इश्क़ के जन्नत में खून की होली खेली थी

सत्य की सादगी पे असत्य ने कालिख पोती थी


अमन के रखवालों पे मौत की महफ़िल सजी थी

कुछ कायरों ने शेरों के काफ़िले पे साज़िश रची थी


गरीबी महँगाई धर्म ने अकड़ जब दिखाई थी

इस ख़ाखी वर्दी ने तब राह हमें दिखाई थी


गाँव की गलियाँ पीड़ा सह न पाई थी

जब तिरंगे में लिपटे सूरमा की आत्मा आई थी


कुछ परिवारों के लिए संकट की घड़ी थी

ख़ुदा के दरबार में दहशतगर्दों के लिए छड़ी थी


मातृभूमि की रक्षा में कठिनाई बहुत बड़ी थी

आतंक के कोहराम के बाद निंदा बेहद कड़ी थी


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