ग़ज़ल
ग़ज़ल
एक काँटा - सा दिल में चुभा रह गया,
जो भी कहना था सब अनकहा रह गया।
ले के जाता रहा सबको मंज़िल तलक,
खुद वहीं का वहीं रास्ता रह गया।
ले गया जो मुझे मुझसे ही छीनकर,
बस वही शख़्स मुझमें बचा रह गया।
इक दिया भोर की राह तकते हुए,
रात भर हिज़्र में जागता रह गया।
यूँ बिना बात के रूठ जाता है वो,
उसमें अब तक बचा बचपना रह गया।
दृष्टि फेरूँ तो ये उसका अपमान है,
इसलिए रूप को देखता रह गया।
सबके सब छोड़कर चल दिए जब मुझे,
साथ मेरे मेरा हौसला रह गया...।।
