Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Sudhir Kumar Pal

Drama

3  

Sudhir Kumar Pal

Drama

फ़लक को छूते शाख़...

फ़लक को छूते शाख़...

1 min
13.3K


फ़लक को छूते शाख़ जाने कहाँ खो गए,

वो लहराती बेलें और गुलाब जाने क्यों बेज़ार हो गए...

टीन के डब्बे और कचरे का ढेर,

अब तो यही गुलिस्तां हो गए...


उड़ उड़ के जो आती थी बू अज़ीज़ गुलों पहचाने उसे अब ज़माने हो गए...

रंगों से लैस जो रहती थी वादियाँ,

गंदगी से उसके भरे नज़ारे हो गए...

सीना चीर के धरती का जो कभी थे खड़े,

धूमिल दरख़्त वो सारे हो गए...


बाग़ों में चहकती नन्ही-नन्ही चिरईयाँ,

किस्से उनके काफी पुराने हो गए...


मीनारें ही मीनारें हैं हर तरफ चूमती गगन को,

रखने को पांव कम ज़मीन के आसरे हो गए...

चिमनियों से उगलता हुआ धुआं,

यही अब तो बादल न्यारे हो गए...


कल कल जो बहती थी मीठे पानी से लबालब,

घुले ज़हर से उस नदी के अब प्याले हो गए...


काश के कर पाता माहताब-ओ-सितारों का दीदार तू भी 'हम्द',

लगता है ख्वाहिश ये अब ख्वाब हो गए....













Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama