मानो या न मानो
मानो या न मानो
जलता हुआ दीपक भी
एक दिन बुझ जाता है
रौशनी से जगमगाते घर को
अंधियारे से भर जाता है
मानो या न मानो...
सागर की ख़ामोशी को
बस लहरें ही समझ पाती है
साहिल से दूर निकल जाने पर
मझधार ही मझधार नज़र आता है
मानो या न मानो...
धूप-छाँव का खेल भी
अज़ब निराला लगता है
कहीं धूप की गरमाहट तो
कहीं छाँव सबको मिलता है
मानो या न मानो...
ईश्वर है सबसे बड़ा अंतर्यामी
जिसमें नहीं है कोई भी कमी
बनाया उसने बुद्धिजीवी मानव
बनाया उसमें छल-कपट की ज़मी
मानो या न मानो...
कभी-कभी रोना पड़ता है
कभी-कभी हँसना पड़ता है
मज़बूरी हैं हर शक्स को यहाँ पर
तभी तो सब कुछ सहना पड़ता है
मानो या न मानो...
