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Shikha Singh

Others

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Shikha Singh

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मानो या न मानो

मानो या न मानो

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जलता हुआ दीपक भी

एक दिन बुझ जाता है

रौशनी से जगमगाते घर को

अंधियारे से भर जाता है

मानो या न मानो...


सागर की ख़ामोशी को

बस लहरें ही समझ पाती है

साहिल से दूर निकल जाने पर

मझधार ही मझधार नज़र आता है

मानो या न मानो...


धूप-छाँव का खेल भी

अज़ब निराला लगता है

कहीं धूप की गरमाहट तो

कहीं छाँव सबको मिलता है

मानो या न मानो...


ईश्वर है सबसे बड़ा अंतर्यामी

जिसमें नहीं है कोई भी कमी

बनाया उसने बुद्धिजीवी मानव

बनाया उसमें छल-कपट की ज़मी

मानो या न मानो...


कभी-कभी रोना पड़ता है

कभी-कभी हँसना पड़ता है

मज़बूरी हैं हर शक्स को यहाँ पर

तभी तो सब कुछ सहना पड़ता है

मानो या न मानो...


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