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Shikha Singh

Drama Others

3  

Shikha Singh

Drama Others

फिर भी मैं पराई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ

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बहू.... ओ बहू.....

सुन तो जरा

मेरे कमरे में से

चश्मा तो लाना,

जी... माँ जी...

क्षण बीते फिर सुनती हूं मैं


बहू... ओ बहू.....

सुन... दो कप

चाय बना ला

उसके साथ पकौड़े भी

तल लें... वो भी गोभी के

जी... माँ जी...

वक्त का पहिया घूमे जैसे

वैसे मैं भी घूमा करती


बहू... ओ बहू...

सुन तो...

रागनी के काॅलेज जाने का

वक्त हो चुका है

उसे अपना लाल वाला

पर्स तो दे दे

जी... माँ जी...

मेरे किस्मत की क्या

यही नीति है...?

या हर बहू की यही रीति है...


बहू... ओ बहू...

'राहुल के पापा आए हैं'

उनके लिए खाना तो

लाकर दे दे

जी... माँ जी...

मुझे मेरे घर से यही सीख मिली हैं

सास-ससुर माँ और पिता से बढ़कर है...


बहू... ओ बहू...

स्कूल की छुट्टी हो गई होगी

बस आ गई होगी

जा बच्चों को ले आ

जी... माँ जी...

कहाँ थी पहले, अब कहाँ खड़ी हूँ

ये सोच-सोच खुद से डरी हूँ


बहू... ओ बहू...

सुन... रात के खाने पर

राहुल की मौसी आ रही है

खाना थोड़ा चटपटा बनाना

रायता, गोभी के पराठे, गाजर का हलवा,

धनिए की चटनी और...

जो तू ठीक समझे, बना लेना

बिगाड़ मत देना

जी... माँ जी...


माँ ने सिखा दिया था,

तू आज से हुई पराई है

जो करना वो सोच-समझकर

क्योंकि तू हो चुकी पराई है


बहू... ओ बहू...

जी... माँ जी...

खाना खालो माँ जी मेरी

मैंने परोस दिया है

केसर वाला दूध भी

मैंने गरम किया है

सुनकर बहू की बात सास ने

मुँह को यूँ सिकुडाया

सुन! बहू तू बहू ही रहेगी

किसी ने तुझे नहीं बतलाया

सास की अकड़न देख

बहू ने साधी मुँह पर चुप्पी

अरे... 

रोज़ - रोज़ की यही थी हालत

रोज़ - रोज़ आती थी सामत

कुछ भी कर लूं, लाख कोशिशें

बेटी न समझी जाऊंगी

जान भी दे दूं अपनी

फिर भी मैं पराई कही जाऊंगी


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