'तुम्हें नमन हे श्रुतिधर मेरा राष्ट्र कीर्ति उन्नायक को" 'तुम्हें नमन हे श्रुतिधर मेरा राष्ट्र कीर्ति उन्नायक को"
मेरे घट घट का तू वासी, अंतर्यामी ओ अविनाशी। मेरे घट घट का तू वासी, अंतर्यामी ओ अविनाशी।
कभी-कभी रोना पड़ता है कभी-कभी हँसना पड़ता है मज़बूरी हैं हर शक्स को यहाँ पर तभी तो सब कुछ सहना पड... कभी-कभी रोना पड़ता है कभी-कभी हँसना पड़ता है मज़बूरी हैं हर शक्स को यहाँ पर त...