उसने मुझे याद किया
उसने मुझे याद किया
बड़ी मुद्दतों के बाद
उसने मुझे याद किया
सदियाँ बीत गई उसे सदा देते देते
इस ओर पलट कर
कभी देखा ही नहीं..
आज फिर क्या बात हुई
उसने मुझे याद किया...
गुज़िस्ता शब की ही तो बात है
आवाज़ में वो तआरुफ़ कि
जैसे कुछ हुआ ही नहीं
वो मुझसे ख़फ़ा भी नहीं और
कोई इलतिज़ा भी नहीं
आवाज़ के उनके यूँ सुना मैंने
बातें कुछ अनसुनी सी रही,और
कुछ मैंने भी सुना ही नहीं
सरे रात का यूँ आलम गुज़रा
सवाल बस इतना था कि क्यों
उसने मुझे याद किया...
कहीं जख्मों को कुरेदना उसकी
आदत तो नहीं
कहीं ये वो तो सोच बैठा नहीं
गहराए ज़ख्म भर गए हों
अब तक शायद
नए ज़ख्मों को चलो थोड़ी और
हवा दी जाए
कहीं ये वही जज्बात तो नहीं थे कि
उसने मुझे याद किया...
यारों बुतपरस्ती की आदत थी मुझमें
बुतों में भी खुदा देखा था मैंने
ये वो जानता था, मानता था
इस नजरिए से सही,कि
एक हथौड़े की चोट बुत पर
लगाई जाए, कि कहीं से
कोई कराह निकले, कि देखें
दर्द अभी बाकी है या फिर से
और बढ़ाई जाए
यही सोच रही हो जो
उसने मुझे याद किया.
याद रखना ऐ मेरे ख़ैर ख्वाह
तुझे मेरी सलामती की कसम
मैं जैसी भी हूँ, जिस हाल में
खुदा का ख़ैर है,वही परवरदिगार मेरा
मुझे तेरे दी हुई ज़ख्मों की कसम
इस तरीके से मुझे याद ना कर
खयाल जो आये
खैर-मकदम पुरसिसी का तो,
चले आना,पास बैठेंगे
थोड़ी गुफ्तगू होगी,बचपन से
बुढ़ापे तक की
थोड़ा रोयेंगे, ढेरों खुशियाँ होंगी
जज़्बातों के दरिया में सैलाबों का
आना-जाना होगा
महफ़िल होगी, मय होगा
रक़्स में झूम जाएँगे फिर हम
ना होंगे फिर तोहमतें, शिकायतें और
नाहि होगा यादों का सिलसिला ही
दो जहाँ की बातों में डूबना हो तो
आओ, बैठी हूँ हमेशा बाहें फैलाई हुई
औरों की बात छोड़ो,जो पसंद हुई
हो बातें मेरी, तो आ जाना
वरना मुझे कभी याद ना कर कि
फिर से सोचूँ कि क्यों
उसने मुझे याद किया...!
