सखियाँ
सखियाँ
सखियों से मिलना...
कितने पल जी उठे थे
चेहरे फिर सबके खिल गए थे
मासूमियत ने उठाये कई सवाल
बहुत दिनों की शिकायत मुझसे
बस लिखती हो सबकी तुम
सबके लिए वो सब कहती हो
दूर क्या गई हमसे
हमे भूल जाने की
तुम भूल करती हो.
कल ही की तो बात थी
बैठे थे हम साथ साथ
कितनी ही शिकायतें थीं
खुद से,तुमसे और
दुनिया के खयालातों से...
मजबूरिये रोज़गार से
संगी जो ठहरे थे
भला बुरा सब कहना-सुनना था
तेरा साजन-मेरा साजन कह
कितने ही मन उद्गार
बताना था, और फिर
वही हंसी ठिठोली
मेरे हमजोली
याद पुरानी बातों को कर
कितने टप्पे बिस्तर पर
घुलट- पलट कर
लम्हों को जी बैठे थे
कितनी तेरी,कितनी मेरी को
कह बैठे थे
गली के उस चाचा को फिर
याद किया था
गुर्राना उस चाची का सोच
मन शैतान हुआ था
फिर उनकी नैन-मटक्का से
आंखें शरमाई थीं
कितनी कुछ बातें तब याद हुईं थीं
जानें कितने दिन बाद मिले थे
तब के बिसरे अब जो मिले थे
लगता था ऐसे
कल भी तो मुलाकात हुई थी
लगता है कल ही तो बात हुई थी
कल ही तो मिले थे
आज लगता है जैसे
कितने पल बीत गए हैं
फिर से हम यादों में हैं बस गए .
