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अपर्णा झा

Fantasy

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अपर्णा झा

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सबब रूठने का

सबब रूठने का

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नहीं तुम हो कोई कलाकार

ना ही तुम फनकार

ना ही कोई शायर ,ना कोई संगतराश

फिर ये कैसा वादा तेरा खुद् में ही खुद् से तेरा

हमेशा ही ख्वाब बुनते रहते हो और,

बना मुज्जसीमा मेरा, खुद में

उतार लेते हो

खुद से मेरी ही बातें तुझमें होती रहतीं हैं

खुदा खैर !ये क्या

हर बार कुछ खास नया

कुछ अंदाज़ नया

कुछ अहसास नया जो मुझमें

ढूंढ लेते हो

कभी सुबह की सूर्य किरणों में निहार

कभी तूफानों को दे प्रहार

बरसाती बयारों , बासंती हवाओं में,

मुझको ढूंढ

मेरे अक्स को बादलों की शक्ल तराश

इंद्रधनुषों के रंगों में सजा और, फिर

चंद अल्फ़ाज़ों में ना जाने कितने

सारे अहबाब इन नज़ारों को देख

तुम लिख जाते हो

चलो आज तुम मेरे मन की लिखो

वादा मुझ से ये तुम्हारा हो

कुछ तुम ऐसा करो

एहसास भी मेरे होंगे

आज मैं तुम से रूठ जाती हूँ

आओ अब मनाओ मुझे

ना मानूँगी फिर भी

ग़म ओ खुशी को जी जाओगे फिर से,

फिर जो एहसास,अल्फ़ाज़

बन निकलेंगे

मतला,मक़्ता बहर की शक्ल ले लेंगे

रदीफ़,काफिया की खूब जमेगी

फिर तखलुस भी कुछ खास होगी

ये तेरी मेरी कहानी होगी,

इसमें तेरी मेरी जिंदगानी होगी

बज़्मों में जो शमा रौशन होंगे

वो हमारी ही बातें होंगी

ग़ज़ल की शक्ल लिए होंगे

ग़ज़ल की शक्ल लिए होंगे.

बोलो,क्या मंजूर है ये वादा

क्या मंजूर है मेरा वादा...


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