मुक्ति बोध
मुक्ति बोध
ये जरूरी तो नहीं
हर बात को उसके अंजाम
तक पहुंचाना
अधूरे किस्से भी तो
होते हैं खूबसूरत इतने
जो अंजाम तक नहीं पहुंचते
जैसे कि...
दिल में एक लॉ जला है और
तूफानों से बचाने की निरंतर कोशिश
रात का घुप्प अंधेरा है और
अंतस में जो एक नूर बचाए रखा है
बनाकर अनवारे जहां दीदा करना है
जैसे कि...
रेगिस्तान में गर्म हवाओं के
थपेड़ों के बीच
एक बूंद जो आँसू के बचाये रखा है
और प्यास बुझानी है
जैसे कि...
पहाड़ों में बर्फीली घटाओं में
ठंड से सिकुड़ता तन और मन
तेरी वो हर एक छोटी सी यादों की
गर्माइश में खुद को लपेट लेना
जैसे कि...
झरनों के किनारे बैठे
अविरल धारा और उसकी आवाज़ों
से बातें करना, मानो
मुझ से वो हाल पूछे और उस
तक उसे है पहुंचाना
शांत नदी के दो किनारे और मान लेना कि
मिल ना पाए, मगर साथ तो हैं
जैसे कि...
आसमान का निरंतर धरती को देखना दूर से
और सोचना, वो कितने पास है मेरे
बारिश की बूंदों से भीग जाना और
सारे जहां की पवित्रता और
हरीतिमा को देख
इस खयाल का आना कि
बारिश ने भिगोया है जहां को
उसे भिगाये कौन...
अंजाम का हासिल अंत ही तो है
एक कली का फूल में खिलना ही तो
उसके मुरझाने की शुरआत है
हर किस्से की शुरुआत जो हुई
अंत होगा ही
जन्म जो लिया तो मृत्यु तो निश्चित है
तो फिर उस अंजाम का इंतिज़ार ही क्यों
तो फिर...
इस शुरू और अंत के मध्य
क्यों जन्म मरण की सोचे
क्यों पाप पुण्य का चक्रव्यूह हो
और हरदम रचे जाने,फंसे जाने और
कुचले जाने के खौफ़ से मिली एक
जिंदगी को
बिना कर्तव्यों के निर्वाहन से
ख़ुशियों सी इस जीवन के
सृजन से दूर
एक माया-मोह के जीवन में
बांधते चले जा रहे और
उपहार स्वरूप मिले जीवन को
बोझ समझते जाते हैं
मान लें ....
एक फूल की मानिंद ये जीवन सफर
उसे पूरा-पूरा खिलने दो
अनगिनत पहलू को समझने दो
उसका बीज से कली होना और
कांटों की ढेर में भी खिल जाना
कैसी ये जिद्द है,कैसा जुनून
जिसे देख भँवरा मन भी
बावरा हो चला
बैरागियों सा खुशियों से झूमने लगा
ना कोई इसे शिकवा ना शिकायत
ना कोई खौफ़ ग़मज़दा होने का
फिर फुर्सत कहां ये सोचे
जीवन बंधन है
मृत्यु के बाद ही मुक्ति है.