नीम का पेड़
नीम का पेड़
मेरे अँगना था एक
नीम का पेड़...
छांव घनी थी,शीतलता संग
विशाल मगर
उम्र बड़ी थी।
अंतिम क्षण में भी उसकी सोच
औरों के हित में ही थी
वह सूखा यानि एक जीवन का
अंत हुआ...
यानि औरों के
हित की खातिर नव रूपों में
नव जीवन तब्दील हुआ.
छत,चौकी,चकला चूल्हा और फिर
अन्न की खातिर,फिर
एक वृक्ष नया बना।
एक सूरत यूँ भी कुछ
जानी पहचानी सी...
कागज,कलम,दवात जिसे
हमने नाम दिया.
अब पाँति बन...।
विछोह का दर्द इस कागज़ पर
लिखना है...
कुछ प्रेम संदेश भी होंगे तुम संग
इस अनुभति को भी
कागज़ संग रंगना है।
भावों की निर्झरिणी बन
धारा प्रवाह बह
मिले सागर में, वाष्पित
हो बादल बन
बरस अब पुनः
धरा हरित है नव पौधों से...
कटा तो था यह वृक्ष
जीवन अंत के निमित्त...
परन्तु प्रेम-विछोह,
प्रस्फुटन, नवजीवन, प्रगति
विस्तार...।
है प्रकृति का नियम और
जीवन का चरखा
देखो इस चरखे से कितने ही
जीवन सृजन,और
उतने ही पौध उगे
फूल खिले, प्रस्फुटन
जीवन की खातिर..।
मेरे अँगना, नीम का पेड़
दे छाँव अपनी
साथ छोड़ चले।।