नकचढ़ी भाभी
नकचढ़ी भाभी
सबने भाभी का
बखान किया
मेरे गले से ये ना उतरा
जब सबकी भाभी है
इतनी अच्छी
तो परिवार टूटने की भ्रांति
तूल इतनी कैसे पकड़ी।
चलो तो फिर एक संतुलन
समाज में बनाते हैं
थोड़ी सी चुगली भाभी की
कर जाते हैं।
मेरी भाभी
बड़ी ही नकचढ़ी
अकड़ बड़ी है
शक्ल दिखे जैसे
हरदम आंखे तरेरी।
भाव ऐसे, जैसे हमने तो
दुनिया ना देखी है
थोड़ी सी पढ़ी,
थोड़ा अंग्रेजी क्या बोली...
हमें तो बस जाहिल ही समझती।
बाबा तुमने बहू
ये कैसी लाई
ना आंखों में शर्म
ना लिहाज किसी की करनी आई
बाबा तुम तो बैठे पैसों पर
आंखों में बेटी सा बहू के
प्यार लिये।
आशाओं में बैठे
सुखद भविष्य को ताकते
माँ की हालत देखो
कैसी इसने बनाई
कौन समझाए इसे
प्यार पैसों से नहीं पनपता
संस्कारों से है घर बनता।
समाज बनता परिवारों से
खुशियाँ मिलती है घरवालों से
समर्पण ही सुखद जीवन का मंत्र
अकड़ करे है सबकुछ बेड़ा गर्ग
समझी मेरी भाभी,
हो तुम बड़ी ही नकचढ़ी।
