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Nandita Kohli

Drama

4.5  

Nandita Kohli

Drama

दुनिया का दस्तूर

दुनिया का दस्तूर

2 mins
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इस दुनिया के दस्तूर से कहा कोई बचता है।

गलती करे कोई भी, मगर बेकसूर ही फसता है।


लड़का -लड़की में कोई अंतर नहीं !

लड़का -लड़की में कोई अंतर नहीं बोलकर,


लड़की का लड़को से आगे निकल जाना

आज भी सुर्खियों में चमकता है।

मामला कुछ भी हो मगर ये ज़माना

तो लड़की को ही गलत समझता है।


बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के बीच,

ये समाज बेटों पे नज़र क्यू नहीं रखता है।

बेटों को सही व गलत की पहचान कराना,

क्यूंं किसी को जरूरी नहीं समझता है।


घर में लड़की बड़ी हो या छोटी !

घर में लड़की बड़ी हो या छोटी,

सबका हुकुम तो उसपर ही चलता है।


कल जाना है किसी और घर,

ये बोल अपना घर पहले ही

पराया सा लगने लगता है।


बेटी और बहु में फर्क इतना,

की इसके बीच क

ा दायरा

आज भी अखरता है।

तारीफों के पुल बांध बेटी के,

पर बहू का काम कहा किसी को जचता है।


नारी सम्मान की बात कर !

नारी सम्मान की बात कर,

घर की रसोई में नर का होना

आज भी हसी का पात्र बनता है।

ऑफिस जाने के बाद भी,

घर की जिम्मेदारियों से कहा कोई बचता है।


तनख्वाह औरत की आदमी से ज़्यादा !

तनख्वाह आज भी औरत की आदमी से ज़्यादा,

लोगों को ये कहा सही लगता है।

नए जमाने के पुराने हम !

नए जमाने के पुराने हम, तभी स्वतंत्र

भारत आज भी महज, एक ढकोसला है।


हां !

बात थोड़ी कड़वी है,

पर इस दुनिया के दस्तूर से कहा कोई बचता है।

सच्च और झूठ में, सबको झूठ ही मीठा लगता है।

और

गलती करे कोई भी, मगर अक्सर बेकसूर ही फँसता है।

अक्सर बेकसूर ही फँँसता है।


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