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Ruchika Srivastava

Tragedy

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Ruchika Srivastava

Tragedy

परायी लड़कियाँ

परायी लड़कियाँ

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पराये तो तभी हो जाते हैं,

जब लड़कियों के चेहरे देख,

आधों के मुँह बन जाते हैं।


जैसे-जैसे बढ़ती रहती उम्र के साथ,

हज़ार काम का बोझ डाल देते उसके हाथ

वही लड़की हैरान अपनो की बातों से है की,

'काम कर वरना हर कोई तुझे भूलेगा

और यहाँ के बाद तुझे कोई नहीं पुछेगा।'


ये सुन उसे सवाल आता है कि,

'क्या काम से ही जुड़ा

एक लड़की का वजूद है,

क्यों काम और एक लड़की का

रिश्ता सदियों से इतना अटूट है,


'काश ! इस रिश्ते में काम की जगह

कोई इंसान होता तो आज

लड़कियों का कोख में मरना ना आम होता।'


काम का बोझ उससे शुरू

और उस पे खत्म होता है,

'क्या तुम थक गयी हो,

ये उससे कोई नही पूछता है।'


धीरे-धीरे कर के;

सबने उसे रोबोट बना दिया है,

अपने ही अंदर की लड़की

भुला बैठी कुछ ऐसे उसने

अपनी आवाज़ को ही सुला दिया है।


सपने दिखाने वालों ने ही सपनों को तोड़ा है,

किसी और ने नहीं,

अपनों ने ही अपना साथ बीच में छोड़ा है।

कुछ तो ज़माने के कानून में आ जाते हैं

तो कुछ को ये ज़माना

अपना कानून सिखा जाता है।


और तभी धीरे-धीरे

एक लड़की का वक़्त बदलता जाता है,

दूसरों से हमें बस एक ज़िम्मेदारी कह कर;

हमको अपनी नज़रों में ना छोटा करो,

अगर उसे हर साल के हर महीने में

हर दिन के हर घन्टे में उसे खुल के

सांस लेने दी होती ना;


उसे भी अपने लड़के की जगह दी होती तो

आज वही ज़िम्मेदारी कन्धों का बोझ ना होती।

घर-घर जा के कहते हो ना,

हमे अपनी ज़िम्मेदारी निपटानी है;

ये कहने के बचाये उसे

उसका एहसास दिलाया होता

तो आज वही ज़िम्मेदारी

आंखों का चमकता सितारा होती।


पर ! असलियत तो यही है

कि सबको एक ही घाट जाना है,

वो क्या जाने लड़की के जज्बात

जिसने उसकी आँखों के पीछे के

आँसुओं को ही नहीं पहचाना है।


बस ! सबकी एक ही कहानी है,

जो अपना वजूद माँगती फिरती

वो भारत की नारी है।


कभी मायका कभी ससुराल

इधर-उधर भटकती है;

ना उसका कोई ठिकाना है,

पता नहीं ! कोन सा कर्ज़ है

और उसे कब तक चुकाना है।


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