STORYMIRROR

akhilesh kumar

Classics

4  

akhilesh kumar

Classics

तजुर्बे से समझता है

तजुर्बे से समझता है

1 min
635


किताबों से नहीं, वह तजुर्बे से समझता है 

मजलूम का बच्चा पैसे की जुबान समझता है


उसे पता, मौत पर औलाद लावारिस कहेगी

वह बूढ़ा झोले में नाम, पता ले के चलता है


रोटी के लिए रोज बसर होतीं जिल्लतें तमाम

मुझे खुद्दारी का निवाला, बड़ा सोंधा लगता है  


वफा है, दर्द है, बेकरारी और उलझनें शातिर

इक तू ही है जो मुझमें सन्दल सा महकता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics