"अच्छा मन-बुरा मन"
"अच्छा मन-बुरा मन"
अजब सी जद्दोजेहद से यह जीवन भरा है
हम लड़ते औरों से,असल शत्रु भीतर पड़ा है
तीर,तलवार,गोली,बारूद से अंतद्वद्व बड़ा है
होता रहता भीतर निरंतर झगड़ा ही झगड़ा है
सही-बुरे मन मे होता रहता सँघर्ष तगड़ा है
जीत जाता है,ज़्यादातर बुरा मन कुबड़ा है
उसके पास लोभ,ईर्ष्या आदि का कपड़ा है
हर शख्स इच्छा पूर्ण न होने से चड़चड़ा है
बुरे मन के आगे,हर शख्स हुआ,लंगड़ा है
सच मन तो एक प्रकार का अंधा कुंआ है
अंधी दुनिया मे पाता वही आदमी दुआ है
जिसके भीतर उठ रहा,सत्य का धुंआ है
वही अंधे कुंए में जलाता दीप उज्ज्वला है
पर इस बुरे मन की भी कम न बद्दुआ है
अच्छे मन को ये बताता,बहुधा कलमुहाँ है
तमन्ना-दुनिया मे उसका ख्वाब पूरा हुआ है
यह बुरा मन,सच्चे मन को बताता चूहा है
जिसका होता,सच्चा मन साखी जिंदा है
बुरा मन कभी न डाल सके,उसके फंदा है
जो बुरे मन के बुरे भाव मिटा देता,बंदा है
वही गाड़ता यहां पर,सफलता का झंडा है
जो अपने अच्छे मन का चलाता डंडा है
वहां बुरा मन होता सदैव ही शर्मिंदा है
जो रखते साखी सच्चे मन की तमन्ना है
वो ही बनते सादगी,सफल,पवित्र परिंदा है
बुरा मन तो तम तालीम का देता,अंडा है
अच्छा मन ही बनाता अच्छा देव,सुनंदा है
जैसे हम सोचते,वैसे ही हम बनते संता है
अगर चंदन सोच रखोगे,चन्दन ही तुम बनोगे
अगर बबूल सोच रखोगे,बबूल ही तुम बनोगे
अच्छी,सही सोच रखो,बनो आदमी चुनिंदा है
बाकी तो बहुत मनु रूपी,पशु भी बहुत जिंदा है।