STORYMIRROR

Indu Verma

Tragedy

4  

Indu Verma

Tragedy

"माँ मुझे अपने आँचल में छुपा ल

"माँ मुझे अपने आँचल में छुपा ल

2 mins
914



माँ मुझे डर लगता है . .

बहुत डर लगता है . .

सूरज की रौशनी आग सी लगती है . .

पानी की बूँदें भी तेजाब सी लगती हैं . .

मां हवा में भी जहर सा घुला लगता है . .

मां मुझे छुपा ले बहुत डर लगता है . .


माँ...

याद है वो काँच की गुड़िया, जो बचपन में टूटी थी . .

मां कुछ ऐसे ही आज में टूट गई हूँ . .

मेरी ग़लती कुछ भी ना थी माँ,

फिर भी खुद से रूठ गई हूँ . .


माँ...

बचपन में स्कूल टीचर की गन्दी नजरों से डर लगता था . .

पड़ोस के चाचा के नापाक इरादों से डर लगता था . .

अब नुक्कड़ के लड़कों की बेख़ौफ़ बातों से डर लगता है . .

और कभी बॉस के वहशी इशारों से डर लगता है . .

माँ मुझे छुपा ले, बहुत डर लगता है..



माँ..

याद है मैं आँगन में चिड़िया सी फुदक रही थी . .

और ठोकर खा के मैं जमीन पर गिर पड़ी थी . .

दो बूंद खून की देख माँ तू भी रो पड़ी थी . .

माँ तूने तो मुझे फूलों की तरह पाला था . .

उन दरिंदों का आखिर मैंने क्या बिगाड़ा था . .

क्यों वो मुझे इस तरह मसल के चले गए है . .

बेदर्द मेरी रूह को कुचल के चले गए . .


माँ ...

तू तो कहती थी अपनी गुड़िया को दुल्हन बनाएगी . .

मेरे इस जीवन को ख़ुशियों से सजाएगी . .

माँ क्या वो दिन जिंदगी कभी ना लाएगी ??

क्या तेरे घर अब कभी बारात ना आएगी ??

माँ खोया है जो मैने क्या फिर से कभी ना पाउंगी ??

माँ सांस तो ले रही हूँ . .

क्या जिंदगी जी पाउंगी ??


माँ ..

घूरते है सब अलग ही नज़रों से . .

माँ मुझे उन नज़रों से छूपा ले . .

माँ बहुत डर लगता है . .

मुझे आंचल में छुपा ले . .




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy