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Indu Verma

Others

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Indu Verma

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घरौंदा

घरौंदा

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ये नाम सिर्फ इतिहास का हिस्सा सा लगता है

दादी नानी का कोई किस्सा सा लगता है

अब कहाँ नज़र आते हैं घरौंदा

अब नज़र आते हैं तो,

बस चूने सीमेंट से बने

'मकान'

एक के ऊपर एक रखे,

एक दूजे का बोझ से ढोते

बिना ज़मीन और आसमान के अनाथ से

रंगीन दीवारों और महँगे सामान से सजे हुए 

जहाँ रिश्ते एक दम बेरंग से

और ज़िंदगियाँ बेढंग सी बिखरी हुई

न तुलसी की सुगंध न मंदिर की घंटी

हवा में बहती है तो बस वाई-फाई की तरंग

और सुनाई देता है तो

बस फ़ोन का वाइब्रेशन

यहां न रसोई में पूरियां छनती है

न शाम वाली वो चाय बनती है

कुछ जिस्म रहते हैं यहाँ

एक दूजे से बेखबर

ज़िंदगी की दौड़ में

सबको पीछे छोड़ने की होड़ में

न जाने कब जाते हैं 

कब वापस आते हैं

सच ये मकान ऐसे ही होते हैं

बिना अहसास, बेजान 

इसे कैसे कह दूं "घरौंदा"

ये घरौंदे का अपमान


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