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Indu Verma

Abstract

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Indu Verma

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"आज़ादी का वहम"

"आज़ादी का वहम"

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जब हर बचपन के हिस्से में "पढ़ाई" होगी

और बेटी होने पर सांत्वना नहीं "बधाई" होगी

जब पेड़ों पर लाशें नहीं बस झूले होंगे

जब घर भरे और "वृद्धाश्रम" खाली होंगे


जब सब स्वीकार करेंगे "मर्द के भी दर्द" को

जब नेता भूलेंगे नहीं अपने "फ़र्ज़" को

जब सिग्नल पर कोई "साहब 10 के दो हैं" कहेगा

और फिर साहब की गाड़ी का शीशा ऊपर नहीं चढ़ेगा


जब कपड़ों पर पैबंद देख हँसी नहीं उड़ाई जाएंगी

जब अपना सब कुछ बेच बेटियां नहीं ब्याही जाएंगी

जब न्याय के दरवाजे से सच मुस्कुराता हुआ बाहर आएगा

जब हक की कीमत को मेज के नीचे से नहीं चुकाया जाएगा


जब "आबादी" कम और देश "आबाद" दिखेगा

जब "नेता" से ज्यादा सामान "स्वदेशी" बिकेगा

जब "हुनर" सिफारिश का मोहताज नहीं होगा

जब हर मुद्दे पर "हिंसा" का आगाज़ नहीं होगा


जब "हरा-केसरिया" अलग अलग नहीं लहराएगा

जब लोग नहीं सिर्फ "रोग" अछूत कहलायेगा

"मातृभाषा" बोलने में जब कोई नहीं शरमायेगा

जब मन से ज्यादा हर घर में "चूल्हा" जलेगा


जब सबसे अच्छा "संतुलन" आपसी समझ का रहेगा

और सम्मान करना "देश-ध्वज" का

रूप "तीर्थ-हज" का होगा

तभी मेरा देश फलेगा फूलेगा

मेरा देश आबाद होगा

मेरा देश आज़ाद होगा।


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