अलसायन
अलसायन
ॐ श्री महाआलास्यपतिये नमः,
ॐ श्री देहचोरीश्वराये नमः।
शैथिल्य गुरुदेव के पद पंकज सिर नवाय,
सुमिरे मात शिथिलता हम पर होऊ सहाय।
निन्द्रा और सुस्ती की वंदना करते बारमबार,
गाँवजनों आलस्य भरा मेरा नमन करो स्वीकार।।
हम कथा सुनाते, आलस्य सकल जड़धाम की,
ये अलसायन है, आलस्य कथा पंकज प्रभात की।
जम्बुद्विपे भरत खंडे आर्यावर्ते भारतवर्षे,
एक नगरी है विख्यात टाटानगर नाम की,
यही जन्म भूमि है परम आलसी पंकज प्रभात की।
हम कथा सुनाते आलस्य सकल जड़धाम की,
ये अलसायन है आलस्य कथा पंकज प्रभात की।
भये कुल के आलसी आत्मा, आलस्यवर्ती पंकज जड़ आत्मा,
आलस्य हेतु कई जुगत लगाया, कभी सफलता कभी थप्पड़ पाया।,
मन में किये नाना विचारा, निष्क्रियता को किया जीवन आधारा,
आलस्य में ही बढ़ते रहे कदम, आलस्य ही बूटी थी मन और प्राण की।
ये अलसायन है आलस्य कथा पंकज प्रभात की।
जीवन में कुछ करना ही था, तो फिर आलस्य ही कर लिया,
सुस्ती, शिथिलता, जड़ता, को, अंग-अंग के रोम-रोम में भर लिया।
हर स्वास-स्वास आलस्य लेते, हर क्षण-क्षण काहिली करते,
अकर्मण्यता में सुकून पाते, निष्क्रियता ही थी धुरी संसार की।
ये अलसायन है आलस्य कथा पंकज प्रभात की।
आलस्य को फिर दूर भगाया, हाथों में फिर कलाम उठाया,
स्याही से रगों में नया रक्त पाया, छन्दों में फिर आलस्य डुबाया।
पूर्ण आलस्य से अर्ध आलस्य तक, जीवन में परिवर्तन आया,
अब खुशबू में डुबो कर, सुनाते आलस्य कथा अपने आप की।
ये अलसायन है आलस्य कथा पंकज प्रभात की।