मूँछ से भली पूँछ
मूँछ से भली पूँछ
एक भिखारी घर आया,
आकर मुझसे फरमाया।
दो रुपये दे दे मास्टर,
मूँछ का सवाल है।
मैं एकदम से चौका,
भिखारी ने मारा चौका।
बोला हैरान मत हो भाई,
मूँछ सवार नाई।
धड़ाधड़ उस्तरे चलते हैं,
फिर क्रीम पाउडर मिलते हैं।
जब ना रही मूँँछ तो काहे उसकी पूछ।
आज मूँँछ की पूछ नहीं होती,
पूूँँछ की पूछ होती है ।
तभी मेरी मूँँछ का एक बाल खड़ा हो गया,
तमतमा कर चेहरा लाल हो गया।
मैंने कहा अरे ओ भिखारी,
भले ही उस्तरे चलते हैं,
नाई क्रीम पाउडर मलते हैं।
भले ही मूँँछ चली जाती है,
पर मूँँछ की जड़ नहीं जाती।
सप्ताह भर बाद फिर,
वही कमाल दिखाती है।
भिखारी भी उल्टा गरमाया,
गुस्से में आकर फरमाया।
अरे तू जाने मूँँछ के गुन,
गर सुनना है तो मुझसे सुन।
ये बिन माचिस की आग है,
जिस घर लग जाए बर्बाद है।
एक दूजे को नीचा दिखाती है,
उल्टे सीधे काम कराती है।
अरे ! मूँँछ से कुत्ते की पूँँछ भली,
हिलाने से रोटी तो मिल जाती है।
हिलाने से रोटी तो मिल जाती है।।
