कमेंट
कमेंट
सुबह सुबह,
हुई घमासान
राशन पानी लेकर,
चढी हमारी भागवान ।
रिश्तों का होने लगा,
धुवांधार उद्धार ।
साथ बर्तन की झांजर,
बजे बार बार ।
मैं असमझ,
नही पा रहा समझ
क्या हुई खता ।
हीम्मत कर बोला,
भागवान एक बार,
तो ! प्यार से बता,
क्या हुई है खता ।
हो मुझे मेरी ,
गलती का अहसास
सुधारने का करुंगा,
पूरा प्रयास ।
सुनकर फिर गयी.भनक,
बोलने लगी,
नाक में तुनक तुनक ।
तुम क्या समझोगे,
तुम्हें क्या लेना देना ।
दो बार खाना,
आँफिस जाना,
आकर सोना ।
क्या..क्या.. लेना,
क्या.. क्या..देना ।
सस्पेंन्स कुछ भी,
समझ ना अाया ।
फिर बोला,
हे महामाया,
एक बार जरा,
प्यार से बता ।
फिर बोली,
आँखें ततेरकर,
जुबा खोली ।
कल फेसबुक देखा
मैं बोला,हाँ
मेरे,भाई का फोटो देखा,
मैं बोल्या,हाँ,
कमेंट किया,
मैं बोल्या..
ना , लाईक किया
फिर गयी भनक,
लाईक तो कोई ,
भी है करता...
कमेंट तो अपना ही करता ।
अापने मेरे रिश्तेदारों को
अपना माना कब ।
मैं बोल्या,
बात का ना कर बतंगड़,
काम में हुई होगी गड़बड़।
वह बोली,
चलो,
गड़बड़ हुई तब,
कमेंट करो,
मेरे सामने अब।
मेरे मोबाईल लिया,
सामने कमेंट करवाया।
तब कही जाकर,
मामला सुलझा ।
नही तो रहता,
उलझा उलझा ।
