प्रियतम का आवास
प्रियतम का आवास
मेरा हृदय, अहा! प्रियतम का आवास
अब तो रात्रि में भी प्रकाश
सर्वत्र खुला आकाश
अंधकार अब हुआ हताश
देह में उनका निवास
नव चेतन की मिठास
अब ना शेष है कोई पाश
संशय का हुआ ह्रास
जन्मो से थी जो प्यास
आनन्दमय प्रभु की आस
जब शाश्वत संग मिला सहवास
मुझ सम पतित के पास
जब सत्य ने किया निवास
अन्तस में जगा ऐसा विश्वास
रुक गए श्वास प्रश्वास
अब तो सारे ब्रह्मांड में प्रकाश
कण कण में प्रभु का निवास
मेरा हृदय, अहा! प्रियतम का आवास!!

