युद्ध का आरम्भ
युद्ध का आरम्भ
युद्ध तो उस दिन प्रारम्भ हुआ था,
जिस दिन सखे! तुमने मुझसे कहा था
ये तेरा और ये मेरा!
जिस दिन तुमने देखा था,
किसी दूसरे सूरज का सवेरा!
जिस दिन तुमने ढूंढा था,
किसी और मिट्टी का बसेरा!!
जिस दिन तुमने प्रेम को
नीति में बदला था,
जिस दिन तुमने स्वार्थ को
प्रीति में बदला था!
जिस दिन तुमने घर को
कारावास कहा था,
जिस दिन मैंने इन बाणों का
दर्द सहा था!!
कौन जाने, तुम उचित थे?
मैं सही था?
पर सखे! तुम्हारे पथ पर,
सुख तो कहीं नहीं था!!
सुख मिलता है,
प्रेम में,
मित्रों में, परिवार में!
पर तुमने इनमें
कुछ भी नहीं चुना था!
सच बताऊं सखे!
तुमने केवल सुना था!
सुना था शकुनि को,
मन्थरा को!
जिन्होंने अपने कर्मों से,
अपमानित किया था
वसुंधरा को!!
तुमने तुरंत घर के भीतर
खींच दी एक रेखा!
जैसे किसी ह्रदय को
बीच से चीर दिया हो
एसा मैंने देखा !
और फिर जिस दिन तुमने
रेखा को इंगित कर कहा था
ये तेरा और ये मेरा,
विनाश तो वहीं से
प्रारम्भ हुआ था !
सखे ! युद्ध तो उस दिन आरम्भ हुआ था !