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GHANSHYAM BADAL

Abstract

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GHANSHYAM BADAL

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क्या हो गया है आदमी...

क्या हो गया है आदमी...

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क्या था हाय, देख लो, क्या हो गया है आदमी,

अपने बनाए जंगलों में, खो गया है आदमी।


 आदमी ने अपने भीतर, आदमी से यूं कहा,

 जाओ, लाओ ढूंढ कर, खो गया है आदमी।


वो जगाने को चला था, सोते हुओं को दोस्तों,

चैन की चादर मिली, लो, सो गया है आदमी।


अपने भीतर पालकर, नफरतों के दानवों को,

मानवों को मारकर, लो गया, है आदमी।


रब ने कहा था 'मीर' बन कर, तू बचाना और को,

'अमीर' बन खुदगर्ज देखो, हो गया है आदमी। 


'बादल' बन तू बरसना, जब कहीं बंजर दिखे,

खंजर लिए हाथ में, क्या बो गया आदमी ? 


बदलाव की इन आंधियों में, चुपचाप बादल रो रहा,

आदमियत, आदमी की, धो गया है आदमी।



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