कुछ अनकहे छन्द
कुछ अनकहे छन्द
इन कोमल सी कलियों को, किसी के
आंगन की परियों को, चैन की सांस लेने दो।
यह तुम्हारे खेलने की गुड़ियां नहीं, किसी के
पलकों का अरमान है, इन्हे भी आसमान छू लेने दो।
जन्म लेकर इन लड़कियों ने कोई गुनाह नहीं किया,
जो कभी दूध में डुबा कर कभी दहेज़,
कभी किसी की हवस के कारण यह मार दी जाती है,
इन्हे भी अपनी ज़िन्दगी जी लेने दो।
मंदिर में दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती,
क्यूँ चौखट पार करते ही अबला नारी बन जाती है।
क्यूँ घर के से बाहर निकलते ही गिद्ध जैसी
एकटक नज़रो से यह सहम जाती है ?
क्यूँ रात में अकेले घर से बाहर निकलने
से यह इतना कतराती है ?
और लड़को की शैतानी हसी सुनकर
इनकी रूह काँप जाती है ?
आखिर क्यों सपने देखने से पहले ही
इनके पंख कुतर दिए जाते है,
और यह सम
ाज पर बोझ बतलाई जाती है ?
आखिर कब तक चंद पैसों के लिए
इनकी ज़िन्दगी तबाह की जाएगी ?
कब तक जिस्म बज़ारी के
हैं गोरख धंधे में इनकी बली दी जाएगी ?
आखिर कब में भी समाज में
बारबार का हक मिलेगा ?
और कब अंधेरे में निकलते वक्त
दरिंदगी की हवाओं से इनका दम नहीं घुटेगा ?
आखिर कब तक रोज
किसी दामिनी की बली दी जाएगी,
और फिर वही बहस छेड़ दी जाएगी?
आखिर कब तक लड़कियों के पहनावे
और रहन-सहन पर रोक लगाई जाएगी,
और जमानत के बलबूते पर दरिंदों को
खुले में सांस लेने दी जाएगी?
क्या कानून बनाने से कोई हल निकल पाएगा ?
नहीं दोस्त, यह समीकरण
केवल समाज के बदलने से बदलेगा,
मानसिकता का बदलना बहुत जरूरी है।
हमारा बदलना बहुत जरूरी है,
मर्द बनना जरूरी है।